रूस की क्रांति होने के क्या कारण थे? ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ।What were the reasons for the Russian Revolution? with historical background.

   

         1917 की रूस की क्रांति 20वीं सदी के विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना रही। 1789 ईस्वी में फ्रांस की राज्य क्रांति ने स्वतंत्रता, समानता और भ्रातत्व की भावना का प्रचार कर यूरोप के जनजीवन को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। रूस की क्रांति ने न सिर्फ रूस और यूरोप को प्रभावित किया वरन विश्व के अनेक देशों पर गहरा प्रभाव डाला। रूसी क्रांति की व्यापकता अब तक की सभी राजनीतिक घटनाओं की तुलना में बहुत विस्तृत थी। इसमें केवल निरंकुश, एकतंत्री, स्वेच्छाचारी, जारशाही ही शासन का ही अंत नहीं किया बल्कि कुलीन जमीदारों, सामंतो, पूंजीपतियों आदि की आर्थिक और सामाजिक सत्ता को समाप्त करने करते हुए विश्व में प्रथम मजदूर और किसान की सत्ता स्थापित की। मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक समाजवाद की विचारधारा को मूर्त रूप प्रथम बार रूसी क्रांति ने ही प्रदान किया। इस क्रांति ने समाजवादी व्यवस्था को स्थापित कर स्वयं को इस व्यवस्था के जनक के रूप में स्थापित किया। यह विचारधारा 1917 के पश्चात इतनी शक्तिशाली हो गई कि 1950 तक लगभग आधा विश्व इसके अंतर्गत आ चुका था। क्रांति के बाद का विश्व इतिहास कुछ इस तरीके से गतिशील हुआ कि या तो वह इसके प्रचार के पक्ष में था या इसके प्रचार के विरुद्ध।
रूसी क्रांति के कारण - ( ऐतिहासिक पृष्ठभूमि)

1. निरंकुश एवं स्वच्छता सारी जार का शासन - रूस की क्रांति के समय जार निकोलस द्वितीय (1894-1917) की निरंकुश एकाधिपति, प्रतिक्रियावादी - निरंकुशता शासन तथा उसकी पत्नी जरीना और भ्रष्ट गुरु रासपुतिन का शासन पर भ्रष्ट प्रभाव जनता के लिए असहनीय बना देना।

2.अयोग्य और भ्रष्ट नौकरशाही - उच्च पदों पर कुलीन वर्ग (सामंतो, जमीदारों) को नियुक्त करना तथा नौकरशाही को वंशानुगत बना देना। जो स्वयं भी स्वेच्छाचारी एवं निरंकुश शासन में विश्वास रखते थे। इस भ्रष्ट एवम् अयोग्य नौकरशाही ने जनता को और भी आक्रोशित कर दिया।

3. किसानों को दयनीय स्थिति - रूस एक कृषि प्रधान देश था और वहां जनसंख्या का बहुसंख्यक हिंसा कृषि ही थे लगभग 86% लोग किसान थे। परंतु 67% भूमि जमीदारों तथा 13% भूमि चर्च और पुजारियों के हाथ में थी। बहुसंख्यक किसान भूमिहीन थे। किसानों की दयनीय स्थिति ने क्रांति का रूप लिया।

4. श्रमिकों की हीन दशा - औद्योगिक क्रांति के कारण पूंजीपति वर्गो का उदय, उनकी स्वार्थता तथा राजाओं का सहयोग ने मजदूरों के हितों को नजरंदाज किया। कम वेतन पर अधिक कार्य करना। बुनियादी सुविधाओं का अभाव, मजूदर संघ न बनाने देना। कुल मिलाकर उनकी कार्यदशाए अत्यंत दयनीय थी। और उनके असंतोष व्याप्त था 1898 में गठित social democratic labour party ने श्रमिक असंतोष को समाजवादी क्रांति में तब्दील कर दिया।

5. सामाजिक एवं आर्थिक असमानता - रुसी समाज मुख्यतः दो और समान वर्गों में विभाजित था प्रथम विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग जिनमें सामंत, कुलीन भू, जार के कृपापात्र और बड़े पूंजीपति शामिल थे दूसरा अधिकारविहीन वर्ग था। जिनमें किसान मजदूर, मध्य वर्ग शिक्षक, बुद्धिजीवी इत्यादि सम्मिलित थे। प्रथम वर्ग संपन्न था। और जार की निरंकुशता एवं स्वेच्छाचारी का समर्थक था। उत्पादन के साधन तथा भूमि, खान, कारखाने इसी वर्ग के हाथों में था। यह वर्ग अपनी सामाजिक, आर्थिक हितों को प्राथमिकता देता था। जबकि इसकी संपन्न का किसानों मजदूरों के परिश्रम से थी। अंत अधिकारविहीन वर्ग में उच्च वर्ग के विरुद्ध घृणा का भाव व्यक्त हो गया। यह वर्ग उत्पादन के साधनों का सामाजिकरण करने के पक्ष में था। इस सामाजिक,आर्थिक विषमता ने सामाजिक - आर्थिक विचारधारा को लोकप्रिय बनाया। इसी सामाजिक आर्थिक असमानता के कारण उत्पन्न वर्ग संघर्ष न केवल क्रांति का कारण बना। बल्कि समाजवादी क्रांति की असफलता का आधार भी बना।
6. समाजवादी विचारधारा का विकास -  यूरोप में औद्योगिक क्रांति के परिणाम स्वरूप समाजवादी विचारधारा का अस्तित्व में आई। समाजवादियों का उद्देश्य मजदूरों की कार्य एवं आवासीय दशा को सुधार करना था। और उसने भी औद्योगिक क्रांति के प्रचार समाजवादी विचारधारा का प्रचार होने लगा। फलस्वरूप सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी तथा सोशलिस्ट रिवॉल्यूशनरी पार्टी की स्थापना हुई। सोशलिस्ट रिवॉल्यूशनरी पार्टी किसानों को संगठित कर क्रांति लाना चाहता था। जबकि सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी सर्वहारा वर्ग को क्रांति का मुख्य आधार मानता था। कृषक को नहीं। सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी मैं भी 1903 में दो भागों में विभाजित हो गया -- ' बोलशेविक ' जो बहुमत में था। और मेनेशेविक जो अल्पमत में था। इन समाजवादी दलों ने किसानों मजदूरों को संगठित कर उनके असंतोष को मुखर कर कांति के लिए आधार तैयार किया।

7. सांस्कृतिक कारण - जार की रूसीकरण की नीति - रूस में रूसी, यहूदी, पोल, उजबेक, तातार आदि विभिन्न जातियां रहती थी। परंतु "एक जार, एक चर्च, और एक रूस" का नारा ने रूसीवासियों को समाजवाद की ओर आकर्षित किया।

8. बौद्धिक चेतना का विकास - उपन्यास और नाटकों के माध्यम से रूस की क्रांति राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक संरचना पर तीखी टिप्पणियां होने लगी। इनसे रूस में एक नई चेतना का विकास हुआ। इस समय टॉलस्टॉय, तुर्गनेव, मैक्सिम गोर्गी, चेखव, दोस्तोवयस्की जैसे उच्च कोटि के उपन्यास व कहानियां नाटक लेखकों ने बौद्धिकता भरी।

9. रूस - जापान युद्ध और 1905 क्रांति -छोटे से देश जापान से पराजित हो जाना जनता के मन में जार के विरुद्ध आक्रोश पैदा किया। इस पराजय ने रूस में पहली बार जनता को एक उदारवादी क्रांति के लिए प्रेरित किया। जिसकी प्रमुख मांग एक प्रतिनिधित्व सभा की स्थापना और शासन को उदार बनाना था। 9 जनवरी 1950 रविवार के दिन सेंटपीटर्सबर्ग की सड़कों पर मजदूरों का शांतिपूर्ण जुलूस जार के राजमहल की ओर प्रस्थान कर रहा था। शाही सेना ने मजदूरों के जुलूस पर गोलियों की बौछार से स्वागत किया। हजारे मजदूर मारे गए। यह दिन इतिहास में खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है। शांतिपूर्ण जुलूस पर जार की निर्मम दमन ने देश में जारशाही के विरुद्ध असंतोष की लहर पैदा कर दी। अंततः जार निकोलस द्वितीय को प्रतिकूल परिस्थितियों में उनकी मांगों को स्वीकार करना पड़ा। प्रशासनिक सुधारों की घोषणा करनी पड़ी। रूस में पहली बार पार्लियामेंट की स्थापना ही जिसे डयुमा जाता है। इस तरह जनता को लोकतांत्रिक स्वतंत्रता और नागरिक अधिकार प्रदान किया गया। किंतु इसका कोई प्रभाव का बड़ा अर्थ नहीं था। क्योंकि इस  डयुमा को जार द्वारा बार-बार भंग किया जाता था। लेनिन ने भी प्रथम क्रांति को ऐतिहासिक महत्व की चर्चा करते हुए कहा था। " 1905 के सवेरा पूर्व अभ्यास के बिना 1917 में अक्टूबर की क्रांति की विजय असंभव होती।

10. तत्कालीन कारण - प्रथम विश्व युद्ध में रूस की भागीदारी - जारशाही की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा ने रूस को प्रथम विश्व युद्ध में धकेल दिया। वस्तुतः  1914 में मित्र राष्ट्र की ओर से उसने भागीदारी निभाई। युद्ध में जर्मनी द्वारा रूस के प्रदेशों पर अधिकार किया गया। रूस में किसानों को जबरन सेना में भर्ती किया जा रहा था। सेना को उचित प्रशिक्षण और वस्त्र - शस्त्र नहीं मिल पा रहे थे। लोहा कोयला की कमी के कारण खदानें बंद होने लगी। फलस्वरुप किसानों कृषक एवं औद्योगिक उत्पादन घट गया। ऐसी स्थिति में आर्थिक रूप से जर्जर स्थिति में रूस पत्तोन्नमुखी की स्थिति में में पहुंच गया। 

  इन सभी के परिणामस्वरूप बोलशेविक दल के लेनिन       ( ब्लादमीर इलिच उलियानोव) के नेतृत्व में रूसी क्रांति हुई।

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