भारत में भूमि सुधार

       भूमि सुधार स्वतंत्रता के प्राप्ति के समय देश की भू- धारण पद्धति में जमीदार - जागीरदार आदि का वर्जस्व था। ये खेतों में कोई सुधार किए बिना, मात्र लगान की वसूली किया करते थे। भारतीय कृषि क्षेत्र की निम्न उत्पादकता के कारण भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) से अनाज का आयात करना पड़ता था। कृषि में समानता लाने के लिए भू- सुधारों की आवश्यकता हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य जोतो के स्वामित्व में परिवर्तन करना था। स्वतंत्रता के 1 वर्ष बाद ही देश में बिचौलियों के उन्मूलन तथा वास्तविक कृषको को ही भूमि का स्वामी बनाने जैसे कदम उठाए गए।  इसका उद्देश्य यह था कि भूमि का स्वामित्व किसानों को निवेश करने की प्रेरणा देगा, बेशर्त उन्हें पर्याप्त पूंजी उपलब्ध कराई जाए। दरअसल समानता को बढ़ाने के लिए भूमि की अधिकतम सीमा निर्धारण एक दूसरी नीति थी। इसका अर्थ है-- किसी व्यक्ति की कृषि भूमि के स्वामित्व की अधिकतम सीमा का निर्धारण करना। इस नीति का उद्देश्य कुछ लोगों में भू स्वामित्व के सकेंद्रन को कम करना था।

    बिचौलियों के उन्मूलन का नतीजा यह था कि लगभग 200 लाख काश्तकारों का सरकार से सीधा संपर्क हो गया तथा वे जमीदारों के द्वारा किए जा रहे शोषण से मुक्त हो गए। भू स्वामित्व से उन्हें उत्पादन में वृद्धि के लिए प्रोत्साहन मिला। इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई। किंतु बिचौलियों के उन्नमुलन कर समानता के लक्ष्य की प्राप्ति पूर्ण प्राप्ति नहीं हो पाई। कानून की कमियों का लाभ उठाकर कुछ भूतपूर्व जमीदारों ने कुछ क्षेत्रों में बहुत बड़े- बड़े भूखंडों पर अपना स्वामित्व बनाए रखा। कुछ मामलों में काश्तकारों को बेदखल कर दिया गया। और भू- स्वामियों ने अपने किसान भू स्वामी होने का दावा किया। कृषकों को भूमि का स्वामित्व मिलने के बाद भी निर्धनतम कृषि श्रमिकों को भूमि सुधारों से कोई लाभ नहीं हुआ।
        
          अधिकतम भूमि सीमा निर्धारण कानून में भी बाधाएं आई। बड़े जमीदारों ने इस कानून को न्यायालय में चुनौती दी, जिसके कारण इसे लागू करने में देर हुई। इस अवधि में वे अपनी भूमि निकट संबंधियों आदि के नाम कराकर कानून से बच गए कानून में भी अनेक कमियां थी। जिसके द्वारा बड़ी जमीदारों ने भूमि पर अधिकार बनाए रखने के लिए लाभ उठाया। केरल और पश्चिम बंगाल की सरकारे वास्तविक किसान को भूमि देने की नीति के प्रति प्रतिबद्ध थी। इसी कारण इन प्रांतों में भू सुधार कार्यक्रमों को विशेष सफलता मिली। दुर्भाग्यवश अन्य प्रांतों की सरकारों में इस स्तर की प्रतिबद्धता नहीं थी। अतएव आज तक जोतो में भारी समानता बनी हुई है।

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