इजारेदारी प्रथा क्या थी और यह असफल साबित क्यों हुई ?
1772 में वारेन हेस्टिंग्स द्वारा प्रारंभ की गई एक नई प्रकार की भू राजस्व थी। जिसे "इजारेदारी प्रथा" के नाम से जाना गया है। इस पद्धति को अपनाने का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी कंपनी द्वारा अधिक से अधिक भू राजस्व वसूल करना था। इस व्यवस्था की मुख्य दो विशेषता थी --
1. पंचवर्षीय ठेके की व्यवस्था थी। हालाकि पंचवर्षीय ठेके के इस दोष के कारण 1777ई. में से परिवर्तन कर दिया गया तथा ठगी की अवधि 1 वर्ष कर दी गई।
2. सबसे अधिक बोली लगाने वाले को भूमि ठेके पर दिया जाना।
3. इजारेदारी प्रथा मुख्यताः बंगाल में ही लागू की गई थी।
• इजारेदारी प्रथा के असफलता के कारण ---
1. इजारेदारी प्रथा में प्रतिवर्ष बोली लगाने से कंपनी को अनिश्चित आया प्राप्त होना।
2. जमीदारों / ठेकेदारों का अस्थाई स्वामित्व के कारण कृषि में निवेश नहीं करना तथा भूमि सुधार में कोई रुचि नहीं लेना था। उनका मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक लगान वसूल करना होता था इसके लिए वे किसानों का उत्पीड़न भी करते थे।
3. जमीदारों / ठेकेदारों द्वारा वसूली की पूरी रकम कंपनी तक नहीं पहुंचा।
यद्यपि प्रारंभ में वारेन हेस्टिंग्स ने इजारेदारी प्रथा शुरू की थी किंतु यह व्यवस्था ज्यादा दिनों तक नहीं चली। बाद में ब्रिटिश शासन ने इसे बंद कर भारत में तीन नई भू राजस्व व्यवस्था लागू की जिसे स्थाई बंदोबस्त, रैयतवाड़ी व्यवस्था तथा महालवाड़ी व्यवस्था नाम से जाना गया।
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