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प्रमुख विचारक जॉन लॉक के विचार ( John locks )

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   जॉन लॉक ( 1632- 1704 ई) 17 वी शताब्दी का प्रसिद्ध अंग्रेज विचारक था। उसे उदारवाद का जनक माना जाता है। जिनके विचार अमेरिका संविधान के प्रस्तावना तथा फ्रांसीसी क्रांति के मानव अधिकारों की घोषणा में उनके विचार देखे जा सकते है। आइए संक्षिप्त में जानते हैं।                        ( चित्र : जॉन लॉक ) 1. जॉन लॉक में जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार को मानवता प्राकृतिक अधिकार माना । मनुष्य इन्हीं अधिकारों की रक्षा के लिए राज्य का निर्माण करता है। 2. उन्होंने राजा के देवी अधिकार के सिद्धांत को खंडन किया। सरकार स्वयं व्यक्ति के निष्ठा से बंधी होती हैं। राजा का कर्तव्य होता है प्रजा की सेवा करना। 3. लॉक ने राज्य के संबंध में सीमित संप्रभुता का सिद्धांत प्रतिपादित किया। सरकार का स्वरूप चाहे जनतांत्रिक हो या राजतांत्रिक उसके अधिकार सीमित होते हैं। कोई भी सरकार व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों जीवन, स्वतंत्रता, समानता और संपत्ति का उल्लंघन नहीं कर सकती। 4. लॉक के विचारों का प्रभाव अमेरिका संविधान की प्रस्तावना ...

भारत में भूमि सुधार

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       भूमि सुधार स्वतंत्रता के प्राप्ति के समय देश की भू- धारण पद्धति में जमीदार - जागीरदार आदि का वर्जस्व था। ये खेतों में कोई सुधार किए बिना, मात्र लगान की वसूली किया करते थे। भारतीय कृषि क्षेत्र की निम्न उत्पादकता के कारण भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) से अनाज का आयात करना पड़ता था। कृषि में समानता लाने के लिए भू- सुधारों की आवश्यकता हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य जोतो के स्वामित्व में परिवर्तन करना था। स्वतंत्रता के 1 वर्ष बाद ही देश में बिचौलियों के उन्मूलन तथा वास्तविक कृषको को ही भूमि का स्वामी बनाने जैसे कदम उठाए गए।  इसका उद्देश्य यह था कि भूमि का स्वामित्व किसानों को निवेश करने की प्रेरणा देगा, बेशर्त उन्हें पर्याप्त पूंजी उपलब्ध कराई जाए। दरअसल समानता को बढ़ाने के लिए भूमि की अधिकतम सीमा निर्धारण एक दूसरी नीति थी। इसका अर्थ है-- किसी व्यक्ति की कृषि भूमि के स्वामित्व की अधिकतम सीमा का निर्धारण करना। इस नीति का उद्देश्य कुछ लोगों में भू स्वामित्व के सकेंद्रन को कम करना था।     बिचौलियों के उन्मूलन का नतीजा यह था कि लगभग 200 लाख क...

क्या है अविश्वास प्रस्ताव? (What is no confidence motion?)

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           संसदीय लोकतंत्र में कोई भी सरकार तभी तक सत्ता में रह सकती है, जब तक उसके पास निर्वाचित सदन (लोकसभा) में बहुमत है। हमारे संविधान का आर्टिकल 75(3) इस नियम को स्पष्ट करता है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। लोकसभा का कोई भी सदस्य, जो अविश्वास प्रस्ताव के लिए 50 सांसदों का समर्थन जुटा लेता है, वो कभी भी मंत्रिपरिषद के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है। अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को मंजूरी मिलने के बाद संसद में इस पर चर्चा होती है। अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने वाले सांसद सरकार की कमियां हाईलाइट करते हैं और सरकार उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर प्रतिक्रिया देती है। • अविश्वास प्रस्ताव पर होता है वोट अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में चर्चा के बाद वोटिंग की जाती है।    लोकसभा के ज्यादातर सदस्य सरकार के समर्थन में वोट करते हैं तो सरकार जीत जाती है और सत्ता में बनी रहती है। इसके उलट अगर अधिकतर सांसद अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट करते हैं तो सरकार गिर जाती है।

क्या कारण था कि भारत में इस्लामिक शासन भारतीय सभ्यता की आत्मा को परिवर्तन करने में असफल रहे?

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      भारत में लगभग 9 फ़ीसदी से 18 सदी तक इस्लामिक शासक रहे। परंतु वे तलवार के बल पर तो हिंदुस्तान को जीत लिया। परंतु धार्मिक एवं सामाजिक रूप से जीतने में कभी सफल नहीं रहे। प्राचीन काल में भी कई आक्रांता जैसे शक, कुषाण, यवन और हूण ने भारत पर आक्रमण किया। परंतु वह बाद में हिंदू धर्म को ही धारण कर उसे आत्मसात कर लिया था।           इस्लामिक साम्राज्य भारतीय सभ्यता को परिवर्तन करने में क्यों असफल रहे आइए जानते हैं। 1. इस्लामिक साम्राज्य के समय भारत की आबादी में लगभग दो - तिहाई से अधिक हिंदू आबादी रहती थी। जिससे अपनी धर्म संस्कृति से लगा था। 2. मध्यकाल में अधिकतर क्षेत्रीय राजा हिंदू थे। जैसे राजपूत मराठा आदि उन्होंने सल्तनत के आगे झुकना स्वीकार किया। परंतु धर्म संस्कृति का परित्याग नहीं किया। 3. अधिकतर मुस्लिम राजा सहिष्णु प्रगति के थे। जैसे अकबर हमेशा धर्मनिरपेक्ष की नीति रखी। 4. मध्यकाल में हिंदू पुनरुद्धार के रूप में उभरा। भक्ति आंदोलन ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया।  5. फिरोजशाह तुगलक, औरंगजेब ने कट्टरता की नीति अपनाई थी। परिणा...

सनातन धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है !!

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               प्राचीन समय भारत मे कभी छुआछुत रहा ही नहीं, और ना ही कभी जातियाँ भेदभाव का कारण होती थी चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं..!! सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।   सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा..? महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।  विदुर, जिन्हें महापंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है। भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया ।  श्रीकृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे,   उनके भाई बलराम खेती करते थे, हमेशा हल साथ रखते थे।   यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्री कृष्ण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया। राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकु...

मंदिर वास्तुकला की नागर शैली

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       पांचवी शताब्दी के पश्चात भारत के उत्तरी भाग में मंदिर स्थापत्य की एक भिन्न शैली विकसित हुई। जिससे नागर शैली के रूप में जाना जाता है।          • नागर शैली की विशेषताएं • मंदिर में सामान्य रूप से मंदिर निर्माण करने की पंचायत शैली का अनुपालन किया गया, इसके अंतर्गत मुखिया मंदिर के सापेक्ष क्रूस आकार के भू विन्यास पर गोण देव मंदिरों स्थापना की जाती थी। • मुख्य देव मंदिर के सामने सभाकक्ष या मंडप स्थित होते थे। • गर्भ गृह के बाहर, नदी देवियों, गंगा और यमुना की प्रतिमाओं को स्थापित किया जाता था। • मंदिर परिषद में जल का कोई टैंक या जलाशय नहीं होता था। • मंदिरों को सामान्य रूप से भूमि से ऊंचे बनाए गए मंच (वेदी) पर निर्मित किया जाता था। • द्वार मंडप के निर्माण में स्तंभों का प्रयोग किया जाता था। • मंदिरों के ऊपर शिखर का निर्माण किया जाता था। शिखर सामान्यतः वर्गाकार और आयताकार या अर्धगोलाकार होते थे। • शिखर के ऊपर एक गोलाकार आकृति को स्थापित किया जाता था जिसे कलश कहा जाता हैं। • गर्भ ग्रह के चारों और प्रदक्षिणा पथ होता था ...

राजपूतों की उत्पत्ति : देशी या विदेशी!

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       भारतीय इतिहास में सामान्यतः 750- 1200 ईसवी का काल राजपूतों का काल के नाम से जाना जाता है। वस्तुतः इस काल में अनेक छोटे-बड़े राज्य की स्थापना हुई और इन शासकों ने अपने को राजपूत वंश से संबंध किया। इन वंशो का नाम इससे पूर्व के समय में सुनाई नहीं पड़ता लेकिन 8वी सदी से राजनैतिक क्षेत्र में राजवंशों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी शुरू की। इसी बिंदु पर यह जानना आवश्यक हो जाता है कि राजपूत कौन थे और उनकी उत्पत्ति कैसे हुई?       वस्तुतः राजपूत शब्द संस्कृत से राजपूत्र से निष्पन्न है। राजपुत्र शब्द का प्रयोग आरंभ में राजकुमार के अर्थ में किया जाता था। और पूर्व मध्यकाल में सैनिक वर्गो और छोटे जमीदारों के लिए किए जाने लगा। आगे राजपूत शब्द शासन वर्ग का पर्याय बन गया।        राजपूतों की उत्पत्ति का प्रश्न काफी जटिल विवादास्पद हैं। कुछ ने इसे  विदेशी जातियों से उत्पन्न बताया और कुछ विद्वानों ने भारतीय उत्पति का मत प्रतिपादित किया। • विदेशी उत्पत्ति का मत :         इन संदर्भ में कर्नल जेम्स टॉड, विलियम...