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Showing posts from July, 2023

भारत में भूमि सुधार

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       भूमि सुधार स्वतंत्रता के प्राप्ति के समय देश की भू- धारण पद्धति में जमीदार - जागीरदार आदि का वर्जस्व था। ये खेतों में कोई सुधार किए बिना, मात्र लगान की वसूली किया करते थे। भारतीय कृषि क्षेत्र की निम्न उत्पादकता के कारण भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) से अनाज का आयात करना पड़ता था। कृषि में समानता लाने के लिए भू- सुधारों की आवश्यकता हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य जोतो के स्वामित्व में परिवर्तन करना था। स्वतंत्रता के 1 वर्ष बाद ही देश में बिचौलियों के उन्मूलन तथा वास्तविक कृषको को ही भूमि का स्वामी बनाने जैसे कदम उठाए गए।  इसका उद्देश्य यह था कि भूमि का स्वामित्व किसानों को निवेश करने की प्रेरणा देगा, बेशर्त उन्हें पर्याप्त पूंजी उपलब्ध कराई जाए। दरअसल समानता को बढ़ाने के लिए भूमि की अधिकतम सीमा निर्धारण एक दूसरी नीति थी। इसका अर्थ है-- किसी व्यक्ति की कृषि भूमि के स्वामित्व की अधिकतम सीमा का निर्धारण करना। इस नीति का उद्देश्य कुछ लोगों में भू स्वामित्व के सकेंद्रन को कम करना था।     बिचौलियों के उन्मूलन का नतीजा यह था कि लगभग 200 लाख क...

क्या है अविश्वास प्रस्ताव? (What is no confidence motion?)

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           संसदीय लोकतंत्र में कोई भी सरकार तभी तक सत्ता में रह सकती है, जब तक उसके पास निर्वाचित सदन (लोकसभा) में बहुमत है। हमारे संविधान का आर्टिकल 75(3) इस नियम को स्पष्ट करता है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। लोकसभा का कोई भी सदस्य, जो अविश्वास प्रस्ताव के लिए 50 सांसदों का समर्थन जुटा लेता है, वो कभी भी मंत्रिपरिषद के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है। अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को मंजूरी मिलने के बाद संसद में इस पर चर्चा होती है। अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने वाले सांसद सरकार की कमियां हाईलाइट करते हैं और सरकार उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर प्रतिक्रिया देती है। • अविश्वास प्रस्ताव पर होता है वोट अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में चर्चा के बाद वोटिंग की जाती है।    लोकसभा के ज्यादातर सदस्य सरकार के समर्थन में वोट करते हैं तो सरकार जीत जाती है और सत्ता में बनी रहती है। इसके उलट अगर अधिकतर सांसद अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट करते हैं तो सरकार गिर जाती है।

क्या कारण था कि भारत में इस्लामिक शासन भारतीय सभ्यता की आत्मा को परिवर्तन करने में असफल रहे?

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      भारत में लगभग 9 फ़ीसदी से 18 सदी तक इस्लामिक शासक रहे। परंतु वे तलवार के बल पर तो हिंदुस्तान को जीत लिया। परंतु धार्मिक एवं सामाजिक रूप से जीतने में कभी सफल नहीं रहे। प्राचीन काल में भी कई आक्रांता जैसे शक, कुषाण, यवन और हूण ने भारत पर आक्रमण किया। परंतु वह बाद में हिंदू धर्म को ही धारण कर उसे आत्मसात कर लिया था।           इस्लामिक साम्राज्य भारतीय सभ्यता को परिवर्तन करने में क्यों असफल रहे आइए जानते हैं। 1. इस्लामिक साम्राज्य के समय भारत की आबादी में लगभग दो - तिहाई से अधिक हिंदू आबादी रहती थी। जिससे अपनी धर्म संस्कृति से लगा था। 2. मध्यकाल में अधिकतर क्षेत्रीय राजा हिंदू थे। जैसे राजपूत मराठा आदि उन्होंने सल्तनत के आगे झुकना स्वीकार किया। परंतु धर्म संस्कृति का परित्याग नहीं किया। 3. अधिकतर मुस्लिम राजा सहिष्णु प्रगति के थे। जैसे अकबर हमेशा धर्मनिरपेक्ष की नीति रखी। 4. मध्यकाल में हिंदू पुनरुद्धार के रूप में उभरा। भक्ति आंदोलन ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया।  5. फिरोजशाह तुगलक, औरंगजेब ने कट्टरता की नीति अपनाई थी। परिणा...

सनातन धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है !!

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               प्राचीन समय भारत मे कभी छुआछुत रहा ही नहीं, और ना ही कभी जातियाँ भेदभाव का कारण होती थी चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं..!! सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।   सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा..? महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।  विदुर, जिन्हें महापंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है। भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया ।  श्रीकृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे,   उनके भाई बलराम खेती करते थे, हमेशा हल साथ रखते थे।   यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्री कृष्ण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया। राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकु...

मंदिर वास्तुकला की नागर शैली

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       पांचवी शताब्दी के पश्चात भारत के उत्तरी भाग में मंदिर स्थापत्य की एक भिन्न शैली विकसित हुई। जिससे नागर शैली के रूप में जाना जाता है।          • नागर शैली की विशेषताएं • मंदिर में सामान्य रूप से मंदिर निर्माण करने की पंचायत शैली का अनुपालन किया गया, इसके अंतर्गत मुखिया मंदिर के सापेक्ष क्रूस आकार के भू विन्यास पर गोण देव मंदिरों स्थापना की जाती थी। • मुख्य देव मंदिर के सामने सभाकक्ष या मंडप स्थित होते थे। • गर्भ गृह के बाहर, नदी देवियों, गंगा और यमुना की प्रतिमाओं को स्थापित किया जाता था। • मंदिर परिषद में जल का कोई टैंक या जलाशय नहीं होता था। • मंदिरों को सामान्य रूप से भूमि से ऊंचे बनाए गए मंच (वेदी) पर निर्मित किया जाता था। • द्वार मंडप के निर्माण में स्तंभों का प्रयोग किया जाता था। • मंदिरों के ऊपर शिखर का निर्माण किया जाता था। शिखर सामान्यतः वर्गाकार और आयताकार या अर्धगोलाकार होते थे। • शिखर के ऊपर एक गोलाकार आकृति को स्थापित किया जाता था जिसे कलश कहा जाता हैं। • गर्भ ग्रह के चारों और प्रदक्षिणा पथ होता था ...

राजपूतों की उत्पत्ति : देशी या विदेशी!

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       भारतीय इतिहास में सामान्यतः 750- 1200 ईसवी का काल राजपूतों का काल के नाम से जाना जाता है। वस्तुतः इस काल में अनेक छोटे-बड़े राज्य की स्थापना हुई और इन शासकों ने अपने को राजपूत वंश से संबंध किया। इन वंशो का नाम इससे पूर्व के समय में सुनाई नहीं पड़ता लेकिन 8वी सदी से राजनैतिक क्षेत्र में राजवंशों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी शुरू की। इसी बिंदु पर यह जानना आवश्यक हो जाता है कि राजपूत कौन थे और उनकी उत्पत्ति कैसे हुई?       वस्तुतः राजपूत शब्द संस्कृत से राजपूत्र से निष्पन्न है। राजपुत्र शब्द का प्रयोग आरंभ में राजकुमार के अर्थ में किया जाता था। और पूर्व मध्यकाल में सैनिक वर्गो और छोटे जमीदारों के लिए किए जाने लगा। आगे राजपूत शब्द शासन वर्ग का पर्याय बन गया।        राजपूतों की उत्पत्ति का प्रश्न काफी जटिल विवादास्पद हैं। कुछ ने इसे  विदेशी जातियों से उत्पन्न बताया और कुछ विद्वानों ने भारतीय उत्पति का मत प्रतिपादित किया। • विदेशी उत्पत्ति का मत :         इन संदर्भ में कर्नल जेम्स टॉड, विलियम...

पल्लव कालीन मंदिर वास्तुकला

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                  जिस तरह से उत्तर भारत में विभिन्न उप- शैलियों के साथ नागर शैली विकसित हुई। उसी प्रकार दक्षिण भारत में मंदिर वास्तुकला की विशिष्ट शैली विकसित हुई। जिनमें द्रविड़ शैली के प्रारंभिक रूप में पल्लव कालीन मंदिर वास्तुकला देखी जा सकती हैं।         दक्षिण भारत में मंदिर वास्तुकला पल्लव शासक महेंद्रवर्मन की देखरेख में शुरू हुई। पल्लव वंश के दौरान बनाये गए मंदिरों में व्यक्तिगत शासकों की अलग-अलग शैली परिलक्षित होती हैं। इन्हें कालक्रम के अनुसार 4 चरणों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं। 1. महेंद्रवर्मन शैली : (600-630ई.)         यह पल्लव मंदिर वास्तुकला का पहला चरण था। महेंद्र वर्मन के शासनकाल में " चट्टानों को काटकर मंदिर का निर्माण"   किया गया था इस दौरान मंदिर को मंडप का जाता था जबकि नागर शैली में मंडप का मतलब केवल सभा गृह होता था। 2. नरसिंह वर्मन शैली : (630-668ई.)       इसे दक्षिण भारत में इससे मंदिर स्थापत्य की विकास का दूसरा चरण कहा जा सकता है...

चोल मंदिर वास्तुकला

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                     चोल शासकों के संरक्षण में दक्षिण भारत में सैकड़ों मंदिर बनवाए गए। इनमें पल्लव वास्तुकला की निरंतरता थी। साथ ही कुछ बदला भी थे। इसे मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ शैली का रूप में जाना जाने लगा। • मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ शैली की विशेषताएं ! • नागर मंदिरों के विपरीत, द्रविड़ शैली के मंदिर ऊंची चारदीवारी से घिरे होते थे। • सामने की दीवार में एक ऊंचा प्रवेश द्वार होता था, जिसे गोपुरम कहा जाता था। • मंदिर का निर्माण पंचायत शैली में किया जाता था। जिसमें एक प्रधान तथा 4 गोण मंदिर होते थे। • द्रविड़ शैली के मंदिरों में पिरामिडनुमा शिखर होते थे जो घुमावदार नहीं बल्कि ऊपर की तरह सीधे होते थे। शिखर को विमान कहा जाता था। • विमान के शीर्ष पर एक अष्टकोण आकार का शिखर होता था। यह नागर मंदिर के कलश के समान है लेकिन यह गोलाकार में नहीं होता था। • द्रविड़ वास्तुकला में केवल मुख्य मंदिर के शीर्ष पर विमान होता था। इसमें नागर वास्तुकला के विपरीत अन्य सहायक मंदिरों पर विमान नहीं होता था। • सभा हॉल गर्भ ग...

चोल कालीन स्थानीय स्वायत शासन

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                  चोल प्रशासन की सबसे उल्लेखनीय विशेषता स्वायत्त शाही ग्रामीण संस्थाओं के परिचालन में परिलक्षित होती हैं। परांतक प्रथम के उत्तरमेरूर अभिलेख में चोल कालीन स्थानीय ग्राम शासन के संबंध में जानकारी मिलते हैं। वस्तुतः पल्लव पांडवों की ग्रामीण स्वायत्तता का अतिविकसित रूप चोल कालीन स्थानीय ग्राम शासन ने दिखाई पड़ता है। ग्राम प्रशासन ग्रामवासियों द्वारा चलाया जाता था। ग्रामीण प्रशासन का संचालन ग्राम समूह एवम ग्राम सभाओं के द्वारा संचालित किया जाता था। • ग्राम समूह :             ग्राम समूह सामाजिक -आर्थिक तथा धार्मिक आधार पर वर्गीकृत किए जाते थे। उनका अधिकार क्षेत्र किसी कार्य विशेष तक ही सीमित होता था। जैसे - धार्मिक आधार पर( मंदिरों के प्रबंधन) मुलपेरुदीयार, आर्थिक आधार पर वलंगियार एवम् मनिग्रामम।   ग्राम सभाएं :            चोल अभिलेख में मोटे तौर पर तीन प्रकार की ग्राम सभाओं का उल्लेख मिलता है - उर, सभा या महासभा तथा नगरम। 1. उर -- • सामान...

महालवाड़ी पद्धति ! विशेषताएं एवम् दोष।

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        लॉर्ड हेस्टिंग के काल में ब्रिटिश सरकार में भू- राजस्व की वसूली के लिए भू राजस्व व्यवस्था का संशोधित रूप लागू किया। जिसे महालवाड़ी बंदोबस्त कहा जाता है। यह व्यवस्था मध्य प्रांत, यूपी (आगरा) एवं पंजाब में लागू की गई। इस व्यवस्था के अंतर्गत 30% भूमि आयी ।         इस व्यवस्था में भू- राजस्व का बंदोबस्त एक पूरे गांव या महाल में जमींदारों या उन प्रधानों के साथ किया गया, जो सामूहिक रूप से पूरे गांव या महाल के प्रमुख होने का दावा करते थे। यद्यपि सैद्धांतिक रूप से भूमि पूरे गांव या महाल की मानी जाती है, किंतु व्यवहारिक रूप से किसान महाल की भूमि को आपस में विभाजित कर लेते थे। तथा लगान, महाल के प्रमुख के पास जमा कर देते थे।  तदोपरांत ये महाल-प्रमुख, लगान को सरकार के पास जमा करते थे। मुखिया या महाल प्रमुख को यह अधिकार था कि वह लगान अदा न करने वाले किसान को उसकी भूमि से बेदखल कर सकता था। इस व्यवस्था में लगान का निर्धारण महाल या संपूर्ण गांव के उत्पादन के आधार पर किया जाता था। • महालवाड़ी पद्धति की विशेषताएं -- 1. भूमि लगा...

रेयतवाड़ी व्यवस्था क्या थी ? इसकी विशेषताएं, उद्देश्य तथा किसानों को किस प्रकार प्रभावित किया।

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                रेयतवाड़ी व्यवस्था एक प्रकार की ब्रिटिश सरकार द्वारा अपनायी भू राजस्व की नई पद्धति थी। मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मनरो द्वारा 1820 में प्रारंभ की गई इस व्यवस्था को मद्रास, बम्बई एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई। बम्बई में इस व्यवस्था को लागू करने में बम्बई के तत्कालीन गवर्नर एलफिंस्टन ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। • रेयतवाड़ी व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं --- 1. किसानों के साथ सीधा बंदोबस्त। जमीदारों के स्थान पर किसानों को भू- स्वामी बनाना तथा ब्रिटिश सरकार ने किसानों के साथ सीधा अलग- अलग समझौते किए। 2. भू राजस्व का निर्धारण वास्तविक उपज की मात्रा के आधार पर ना करके भूमि के क्षेत्रफल के आधार पर किया गया। 3.  ब्रिटिश भारत की 51% भूमि पर लागू की गई। • रेयतवाड़ी व्यवस्था लागू करने के उद्देश्य ---- 1. बिचौलियों (जमीदारों) के वर्ग को समाप्त करना था। क्योंकि स्थायी बंदोबस्त में निश्चित राशि से अधिक वसूल की गई सारी रकम जमीदारों द्वारा हड़पी जाती थी तथा सरकार की आय में कोई वृद्धि नहीं होती थी। अंतः आय ...

स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था क्या है? स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था की विशेषताएं, उद्देश्य, लाभ और हानियां!

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     1786ई में लॉर्ड कार्नवालिस गवर्नर जनरल का आगमन के दौरान उसके सामने लगान वसूली एक जटिल मुद्दा था। इसके समाधान के लिए कार्नवालिस ने वर्ष 1790ई. भू राजस्व की नई व्यवस्था लायी। जो स्थायी बंदोबस्त/ जमीदारी व्यवस्था या इस्तमरारी व्यवस्था के नाम से जानी गई। उसने सबसे पहले बंगाल में प्रचलित भू राजस्व व्यवस्था का पूरा अध्ययन किया। उसके समक्ष तीन प्रमुख प्रश्न थे- 1. जमींदार या कृषक में से किसके साथ व्यवस्था की जाए? 2. कंपनी की भूमि की उपज का कितना भाग वसूला जाए? 3. भूमि व्यवस्था स्थाई बनाई जाए या अस्थाई बनाई जाए। उपरोक्त प्रश्नों के हल के लिए राजस्व बोर्ड के प्रधान सर जॉन शार और अभिलेख पाल(Record keeper) जेम्स ग्रांट के साथ लॉर्ड कार्नवालिस का लंबा वाद विवाद हुआ। लॉर्ड कार्नवालिस ने जमींदारों को भूमि का स्वामी मान लिया और 1790 ईस्वी में उनसे 10 वर्षीय व्यवस्था की। जो 22 मार्च 1793 ई. में उसने इस व्यवस्था को स्थाई बना दिया। यह व्यवस्था भारत के बंगाल, बिहार, उड़ीसा,उत्तरप्रदेश के वाराणसी प्रखंड तथा कर्नाटक के उत्तरी भाग में लागू की गई थी जो मात्र भारत के 19% भाग ...

इजारेदारी प्रथा क्या थी और यह असफल साबित क्यों हुई ?

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                 1772 में वारेन हेस्टिंग्स द्वारा प्रारंभ की गई एक नई प्रकार की भू राजस्व थी। जिसे "इजारेदारी प्रथा" के नाम से जाना गया है। इस पद्धति को अपनाने का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी कंपनी द्वारा अधिक से अधिक भू राजस्व वसूल करना था। इस व्यवस्था की मुख्य दो विशेषता थी -- 1. पंचवर्षीय ठेके की व्यवस्था थी। हालाकि पंचवर्षीय ठेके के इस दोष के कारण 1777ई. में से परिवर्तन कर दिया गया तथा ठगी की अवधि 1 वर्ष कर दी गई। 2. सबसे अधिक बोली लगाने वाले को भूमि ठेके पर दिया जाना। 3. इजारेदारी प्रथा मुख्यताः बंगाल में ही लागू की गई थी। •   इजारेदारी प्रथा के असफलता के कारण --- 1.  इजारेदारी प्रथा में प्रतिवर्ष बोली लगाने से कंपनी को अनिश्चित आया प्राप्त होना। 2. जमीदारों / ठेकेदारों का अस्थाई स्वामित्व के कारण कृषि में निवेश नहीं करना तथा भूमि सुधार में कोई रुचि नहीं लेना था। उनका मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक लगान वसूल करना होता था इसके लिए वे किसानों का उत्पीड़न भी करते थे। 3.  जमीदारों / ठेकेदारों  द्वारा वसूली की ...

क्या भारत में ब्रिटिश विजय संयोगवश थी या उदेशयपूर्ण ?

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           इतिहासकार इस मूलभूत प्रश्न पर बहस करते हैं कि क्या ब्रिटिश की भारत विजय संयोगवश थी या इरादतन थी? इसमें विभिन्न इतिहासकारों का अपना- अपना मत था। जिन्हें हम आगे देखेंगे। • ब्रिटिश की भारत विजय संयोगवश थी के पक्षकार :        जॉन सीले के नेतृत्व वाला समूह ब्रिटिश की भारत विजय को गैर इरादतन और संयोगवश मानता है। यह कहता है कि ब्रिटिश भारत में केवल व्यापार करने के लिए आए थे। और इस क्षेत्र पर कब्जा करने की उनकी कोई मंशा नहीं थी। वह ना चाहते हुए भी भारतीयों द्वारा स्वयं उत्पन्न किए राजनीतिक संकट में फंस गए थे। और भारतीय क्षेत्र को कब्जा करने के लिए उन्हें बाध्य किया गया। • ब्रिटिश विजय को उदेश्यपूर्ण मानने वाले पक्षकार :      दूसरी और इतिहासकारों का एक समूह इस बात से सहमत नहीं था और मानता है कि अंग्रेज भारत में एक व्यापक एवं शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना हेतु आए थे। उन्होंने इसके लिए एक सुनियोजित रणनीति एवं योजना बनाई और धीरे-धीरे साल दर साल इस पर काम किया।        शायद शुरुआती दौर में अ...

प्लासी का युद्ध - कारण एवं महत्व!

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           प्लासी की लड़ाई 23 जून 1757 ई. को बंगाल के नवाब सिराज- उद - द्वोला और रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के बीच हुई। सिराज़ुद्दौला की सेना की संख्या लगभग 50000 थी तथा अंग्रेजों की सेना की क्या मात्र 3200 थी। परंतु सिराजुद्दौला के सेनापति मीर जाफर षड्यंत्र में शामिल होने के कारण सेना के एक बड़े हिस्से ने युद्ध में भाग नहीं लिया। जब सिराजुद्दौला को पता चला कि उसके बड़े-बड़े सेना नायक मीरजाफर तथा दुर्लभराय विश्वासघात कर रहे हैं तो वह अपनी जान बचाकर युद्ध क्षेत्र से भाग गया क्षेत्र से पहुंच गया। फिर वहां से अपनी पत्नी के साथ पटना भाग गया। कुछ समय पश्चात मीर जाफर के पुत्र ने सिराजुद्दौला की हत्या कर दी इस प्रकार अंग्रेजों का षड्यंत्र सफल रहा। • प्लासी के युद्ध के पीछे कारण -- 1.अंग्रेजों तथा सिराजुद्दौला के मध्य विवाद और विच्छेद- नवाब की आज्ञा के बिना अंग्रेजों की कंपनी द्वारा कलकता की किलाबंदी( फोर्ट विलियम), कम्पनी को दिए गए व्यापार अधिकारों का इसके अधिकारियों के द्वारा अपने व्यक्तिगत व्यापार के लिए दुरुपयोग...

क्या है हिंदू होने का मतलब ?

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         में आप से कहूं। कि लगभग 12वी सदी से पहले भारत भूमि पर कोई " हिंदू नाम का शब्द " था ही नहीं। तो आप शायद ही विश्वास करेंगे। पर यह सत्य है। हिंदू  मूलतः भारतीय शब्द नहीं है। यह सिंधु (या सिंधु) नदी के पार की भूमि और लोगों को संदर्भित करने के लिए पहले यूनानियों और फिर फारसियों द्वारा दिया गया एक शब्द है । "हिन्दू धर्म" शब्द 12वीं-13वी सदी में ही आम प्रयोग में आया। फिर, इस शब्द का इस्तेमाल मूल रूप से बाहरी लोगों द्वारा हिंदुओं के "इस्म" का वर्णन करने के लिए किया।   हिंदू को भौगोलिक पहचान से जोड़कर देखते हैं। वह कहते हैं, 'हिमालय और हिंद महासागर के बीच की जमीन पर रह रहे लोग हिंदू हैं। यह एक भौगोलिक पहचान है। आज भी यह देश उत्तर भारत में हिंदुस्तान कहलाता है, क्योंकि लोग किसी धर्म के बारे में नहीं, बल्कि जमीन के बारे में बात कर रहे होते हैं। बाकी दुनिया हमें हिंदू कहती है, क्योंकि वह हमें खुद से अलग रूप में देखती है।' यानी हिंदुओं को सिर्फ धर्म से जोड़कर देखना सही नहीं होगा। हिन्दू इस धरती का नाम था, और सनातन धर्म यहां का ध...

जम्बूद्वीपे : एक सूत्र में बंधा अखण्ड भारत कब- कब टूटा

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    आपने अक्सर ये मंत्र जरूर सुना होगी --  जम्बू द्वीपे भरतखंडे आर्यावर्ते  देशांतरगते....... इस मंत्र में ' जम्बूद्वीपे' को पृथ्वी के 7 द्विपो ( जम्बू, प्लक्ष, शाल्मल, कुश, क्रोच, शाक और पुष्कर) में से एक बताया गया है। जो सभी द्वीपो के मध्य स्थित है। जम्बूद्वीपे को ' अखंड भारत' के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।       वर्तमान में अखंड भारत को लेकर लोगों की अपनी अलग - अलग अवधारणा रही है। जिसे लेकर चार मत निकलते है। 1. भारत के साथ पाकिस्तान और चीन अधिकृत कश्मीर। 2. 1947 के बटवारे के पहले का भारत (भारत, पाकिस्तान तथा बांग्लादेश) 3. भारत के साथ पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, म्यांमार, श्री लंका, नेपाल तथा भूटान। 4. भारत, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, म्यांमार, श्री लंका, नेपाल तथा भूटान के साथ ईरान, थाईलैंड, कंबोडिया तथा इंडोनेशिया।         • आइए जानते है। भारतवर्ष इतिहास में कब-कब एक सूत्र में बंधा था। तथा कब - कब टुकड़ों में बटा।         इतिहास गवाह है, कि भारतवर्ष जब- जब कमजोर पड़ा हैं। तब-तब भारत खंडों में ...